विनोद कुमार झा
जब चंद्रमा अपने पूर्ण सौंदर्य में आकाश में दमकता है, और धरती पर उसकी चांदनी किसी आध्यात्मिक अनुभव की तरह बरसती है, तब आता है बुध पूर्णिमा एक ऐसा पावन पर्व, जो केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि मानव चेतना के उत्कर्ष का प्रतीक है। यह दिन भगवान बुद्ध की जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण तीनों महान घटनाओं का साक्षी है। यह दिवस केवल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए ही नहीं, बल्कि समूची मानवता के लिए आत्मचिंतन, करुणा और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा है।
गौतम बुद्ध कोई साधारण महापुरुष नहीं थे; वे विवेक और वैराग्य के बीच संतुलन का वह स्रोत थे, जिसने समय की धाराओं को मोड़ दिया। उनका जन्म लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ, और बचपन से ही उन्होंने जीवन के यथार्थ को समझने की ललक दिखाई। जब उन्होंने एक वृद्ध, एक रोगी, एक मृतक और एक संन्यासी को देखा, तब उनके भीतर अंतर्ज्ञान की ज्वाला जगी।
राजमहल छोड़कर बुद्ध ने निर्वाण की खोज में निकलकर यह सिद्ध किया कि सच्चा त्याग केवल वस्त्रों का नहीं, वासनाओं का होता है। बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे गहन ध्यान के पश्चात जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, तो वह क्षण केवल उनका निजी नहीं, बल्कि समूचे मानव समाज का जागरण था।
बुद्ध पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभूति है। यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि आंतरिक शांति है। बुद्ध के चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और मध्यम मार्ग जैसी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी 2600 वर्ष पूर्व थीं।
गौतमबुद्ध के चार आर्य सत्य इस प्रकार है :- 1. जीवन दुःखमय है। 2. दुःख का कारण तृष्णा है। 3. तृष्णा का अंत संभव है। 4. दुःख-निरोध का मार्ग अष्टांगिक पथ है।
अष्टांगिक पथ : सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि। इन सिद्धांतों में न केवल आत्मकल्याण का मार्ग है, बल्कि एक शांतिपूर्ण समाज की रचना की कुंजी भी।
आज जब मानवता संकीर्णताओं, युद्ध, आतंक और मानसिक तनाव से जूझ रही है, तब बुद्ध की शिक्षाएँ हमें सहअस्तित्व, करुणा और अहिंसा का संदेश देती हैं। बुद्ध ने धर्म को किसी संप्रदाय या जाति में नहीं बाँधा, उन्होंने कहा, "अप्प दीपो भव" यानी "स्वयं दीपक बनो"। यह उद्घोष आज के युवा को आत्मनिर्भरता और आत्मजागरण का संदेश देता है।
बुद्ध की करुणा केवल मनुष्य तक सीमित नहीं थी वे पशु-पक्षियों, वृक्षों और समस्त जीवों के प्रति संवेदनशील थे। उनकी यह दृष्टि हमें पर्यावरण-संरक्षण और जीवमात्र के सम्मान की प्रेरणा देती है।
बुद्ध पूर्णिमा: एक आत्मचिंतन का अवसर : इस दिन हमें केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह एक आत्मनिरीक्षण का दिन होना चाहिए। क्या हम वास्तविक बुद्धत्व के मार्ग पर हैं? क्या हमने अपने भीतर की हिंसा, द्वेष और मोह को समझा है? क्या हम दूसरों के दुखों को महसूस कर पाते हैं?
बुद्ध पूर्णिमा पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि: हम सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलेंगे, क्रोध को करुणा से, द्वेष को मैत्री से और भ्रम को विवेक से जीतेंगे, धर्म को रूढ़ि नहीं, जीवन की संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के रूप में समझेंगे।
जब रात्रि में चंद्रमा की शीतल चाँदनी चारों ओर फैलती है, तब हमें यह स्मरण करना चाहिए कि बुद्धत्व हमारे भीतर भी निहित है।
बुद्ध ने ईश्वर की परिभाषा नहीं दी, उन्होंने स्वयं को जानने और सुधारने की शिक्षा दी। उन्होंने भक्ति नहीं, बोध की ओर उन्मुख किया। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हम एक दीप जलाएँ अपने अंतर्मन में, ताकि जीवन के अंधेरे कोनों में भी प्रज्ञा का प्रकाश फैल सके।
बुद्धम शरणं गच्छामि।
धम्मं शरणं गच्छामि।
संघं शरणं गच्छामि।