आस्था और सेवा सर्वोपरि..

विनोद कुमार झा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में आस्था की डुबकी लगाकर करोड़ों श्रद्धालुओं के साथ अपनी धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रदर्शन किया। भगवा वस्त्र धारण किए प्रधानमंत्री ने त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद गंगा नदी को नमन किया और सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया। यह अर्घ्य उन्होंने न केवल अपने लिए, बल्कि देश के 130 करोड़ नागरिकों के कल्याण, समृद्धि और खुशहाली के लिए समर्पित किया।  

उन्होंने अपने स्नान के दौरान उन लोगों के लिए भी विशेष प्रार्थना की, जो किसी कारणवश महाकुंभ संगम में डुबकी लगाने में असमर्थ हैं। उनके इस कार्य को कई लोग आस्था और जनसेवा का प्रतीक मान रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि गंगा मां और सूर्यदेव के प्रति श्रद्धा केवल व्यक्तिगत आस्था नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा है।  

प्रधानमंत्री मोदी के इस धार्मिक आयोजन में भाग लेने को लेकर राजनीतिक हलकों में भी चर्चा तेज हो गई है। चूंकि इस समय दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान चल रहा है, ऐसे में प्रधानमंत्री का महाकुंभ में आकर आस्था का प्रदर्शन करना कई राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।  

प्रधानमंत्री अक्सर अपने भाषणों में कहते हैं, "मोदी है तो मुमकिन है," और इस कथन के जरिए उन्होंने बार-बार यह संदेश दिया है कि जो काम अब तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया, वह वे करके दिखाएंगे। उनका कहना है कि वे जनता के सेवक हैं और जनता का निर्णय उनके लिए सर्वोपरि है। उनके इस कदम को कुछ लोग उनके चुनावी अभियान के हिस्से के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे एक नेता के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति समर्पण के रूप में मानते हैं।  

महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा आयोजन है, जिसमें देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं। यह आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है और इसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम माना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी का इस आयोजन में भाग लेना न केवल उनकी व्यक्तिगत आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह देशवासियों के साथ एकजुटता और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सम्मान को भी दर्शाता है।  

प्रधानमंत्री के इस दौरे को लेकर आम जनता में भी मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। जहां एक ओर लोग इसे उनके धार्मिक विश्वास और देश के सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान के रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे एक राजनीतिक कदम के रूप में भी मान रहे हैं। उन्होंने कई बार अपने भाषणों में यह स्पष्ट किया है कि वे जनता के सेवक हैं और जो भी निर्णय जनता जनार्दन करेगी, वह उन्हें स्वीकार्य होगा। उन्होंने यह भी कहा है कि उनका उद्देश्य केवल शासन करना नहीं, बल्कि देश की सेवा करना है।  

महाकुंभ में उनकी उपस्थिति और संगम में डुबकी लगाकर गंगा मां को प्रणाम करना, इस बात का प्रमाण है कि वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने यह संदेश दिया कि आस्था और सेवा का यह संगम ही भारत की असली पहचान है। प्रधानमंत्री का महाकुंभ में स्नान और सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पण करना न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उनके जनसेवा के भाव को भी दर्शाता है। उनके इस कदम को जहां कुछ लोग एक श्रद्धालु नेता के रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ इसे आगामी चुनावों के मद्देनजर एक रणनीतिक प्रयास मान रहे हैं।  

चाहे जो भी दृष्टिकोण हो, प्रधानमंत्री ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वे हर मंच पर जनता के साथ खड़े हैं चाहे वह धार्मिक आस्था का हो, सामाजिक सेवा का या राजनीतिक जिम्मेदारी का। उनकी यह यात्रा एक बार फिर भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती प्रदान करती है।

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