विनोद kumar झा
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। कार्तिक मास को सबसे पवित्र महीना माना जाता है, और इस महीने की पूर्णिमा को गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है, जिससे पापों से मुक्ति मिलती है। इस अवसर पर भगवान की पूजा में शुद्ध कुमकुम, धूप, कपूर, तुलसी, और परिजात तेल का प्रयोग अत्यंत शुभ माना जाता है। स्नान के बाद दान-पुण्य करने से हजार गुना फल प्राप्त होता है, और बहुत से भक्त इस दिन व्रत भी रखते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के पूजन और उपवास का महत्व
इस दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। कहीं-कहीं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी की जाती है। भगवान शिव की भी पूजा का विधान है, क्योंकि इसी दिन उन्होंने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस अवसर पर सूखे मेवे, सिंघाड़ा आदि फलाहार में उपयोग किए जाते हैं। कई घरों में मखाने की खीर या आटे का मीठा चूर्ण प्रसाद रूप में चढ़ाया जाता है। इस दिन मांसाहार का सेवन वर्जित है, और उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई जैसे अनाजों का त्याग करना भी शुभ माना गया है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नामक राक्षस के तीन पुत्र - तारकक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली ने ब्रह्माजी की तपस्या कर तीन नगरों का वरदान प्राप्त किया। इन नगरों में तारकक्ष का नगर सोने का, कमलाक्ष का नगर चांदी का, और विद्युन्माली का नगर लोहे का था। ब्रह्माजी ने वरदान दिया कि केवल वही देवता उन्हें मार सकता है जो तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट कर सके।
तीनों राक्षसों ने अपने नगरों से धरती और स्वर्ग पर आतंक मचा दिया। देवता भयभीत हो भगवान शिव की शरण में गए। तब भगवान शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण करवाया, जिसमें चंद्रमा और सूर्य रथ के पहिए बने, हिमालय धनुष बना, और शेषनाग प्रत्यंचा बने। इस दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान शिव ने त्रिपुरासुरों का नाश किया, और उन्हें त्रिपुरारी के नाम से पुकारा गया।
त्रिपुरासुर वध की कथा का महत्व
भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों नगरों का विनाश कर देवताओं को राक्षसों से मुक्ति दिलाई। तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव को त्रिपुरारी के रूप में पूजने की परंपरा चली आ रही है। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य, और भगवान शिव, विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।