जय माता दी: सृष्टि की आदिशक्ति हैं मां कुष्मांडा, इनकी आराधना से भक्तों के दुखों का नाश होता है


विनोद कुमार झा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।  

दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

जो कलश मदिरा से भरा हुआ है, रुधिर अर्थात् रक्त से लथपथ है। ऐसे कलश को माँ भगवती ने अपने दोनों कर कमलों में धारण किया है। ऐसी मां कूष्माण्डा मुझे शुभता प्रदान करें।

नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के चौथे रूप "माता कूष्माण्डा" की पूजा की जाती है। इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति माना जाता है। जब चारों ओर अंधकार था, तब इन्हीं ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए इन्हें "कूष्माण्डा" कहा गया है, जिसका अर्थ है—जिसने ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। 

माता कूष्माण्डा अष्टभुजा धारी हैं, उनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा होती है, जबकि आठवें हाथ में जप माला है। इनका वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े (कद्दू) की बलि प्रिय है, इसलिए इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है। उनका निवास सूर्यमंडल के भीतर है, जहां जाने की शक्ति केवल उन्हीं में है। उनकी कृपा से रोग, शोक का नाश होता है और आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

मां कुष्मांडा की कथा

जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, चारों ओर अंधकार था। तब देवी कूष्माण्डा प्रकट हुईं और अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड का निर्माण किया। इस प्रकार, यह देवी सृष्टि की उत्पत्तिकर्ता बनीं और कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुईं।

मां की पूजा विधि

पूजा की शुरुआत में कलश और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें। फिर देवी कूष्माण्डा का आवाहन कर षोडशोपचार विधि से पूजन करें। पूजा में पुष्प, चंदन, धूप-दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें और मंत्रों का उच्चारण करें। 

माता कूष्माण्डा की आराधना से भक्तों के दुखों का नाश होता है और सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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