सूखे पेड़ में हरे पत्ते....

 एक प्रेरणादायक, भावनात्मक और आत्मपुनर्निर्माण की विस्तृत कहानी

लेखक : विनोद कुमार झा

जीवन कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है, जहां हमें लगता है कि जैसे हमारा अस्तित्व किसी सूखे पेड़ की तरह हो गया है बिना पत्तों का, बिना हरियाली का, और बिना किसी उम्मीद के लेकिन प्रकृति के नियम कभी गलत नहीं होते। जिस पेड़ में जड़ें जिंदा हों, वह कभी भी दोबारा हरा हो सकता है। यह कहानी उसी सत्य को रेखांकित करती है, एक ऐसे व्यक्ति की, जिसका जीवन राख हो चुका था, पर एक छोटी-सी उम्मीद ने उसे दोबारा नया जन्म दिया।

 शहर की चकाचौंध से टूटा हुआ एक इंसान : अरविंद सिंह चौहान। नाम सुनते ही लोगों को एक समय उसका आत्मविश्वास और तेज याद आता था। वह शहर के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग फर्म में प्रोजेक्ट हेड था। बड़े-बड़े कॉन्ट्रैक्ट, लाखों का भुगतान, शानदार फ्लैट, गाड़ी, और उससे भी बढ़कर उसका आत्मसम्मान।  पर जिंदगी कब गिरा दे, किसे पता होता है?

 साल 2023 के अंत की एक रात ने अरविंद की दुनिया को जड़ से हिला दिया। उसके माता-पिता, जो गांव में रहते थे, सड़क दुर्घटना में चल बसे। अरविंद टूट गया। वह जैसे अपने ही भीतर खो गया।

 कंपनी में उसका प्रदर्शन गिरने लगा। एक के बाद एक प्रोजेक्ट असफल होने लगे। उच्च अधिकारियों ने उसे नोटिस पर रख दिया। और फिर एक दिन, कंपनी ने अचानक घोषणा की “फर्म दिवालिया हो चुकी है। सभी कर्मचारियों की छुट्टी की जाती है।” अरविंद के सिर पर जैसे पहाड़ गिर गया।

करोड़ों का कर्ज़, टूटता आत्मविश्वास, अकेलापन, माता-पिता का चले जाना उसकी जिंदगी में जैसे अंधेरा फैल गया। एक ही महीने में वह ऐसे बिखर गया जैसे कोई तेज़ तूफान किसी मजबूत पेड़ को जड़ से उखाड़ देता है।

टूटता मन और वापस लौटने की विवशता  :  शहर में उसके कुछ दोस्त थे, पर कोई भी सच में उसके लिए नहीं था। एक दिन, बिल्डिंग मालिक ने किराया न दे पाने के कारण घर खाली करने को कह दिया। जो गाड़ी उसके लिए शान थी, वह भी बैंक ने जब्त कर ली। अरविंद ने शहर छोड़ने का फैसला कर लिया। उसने बस टिकट खरीदी और अपने पैतृक गांव लौट आया—एक ऐसी जगह जहाँ उसने कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी उसे वापस खींच ले जाएगी। गांव छोटा था और लोग सरल थे, वातावरण शांत, और हवा में मिट्टी की खुशबू थी। पर अरविंद के भीतर इतनी तकलीफ थी कि उसे कुछ अच्छा महसूस ही नहीं होता था। घर पहुंचा तो दरवाजे के सामने वही पुराना आंगन था। और आंगन के पीछे, उसके पिता द्वारा लगाया गया बड़ा पेड़ अब पूरी तरह सूखा। तना काला पड़ चुका था। शाखाएँ कांटों जैसी दिख रही थीं। कोई पत्ता नहीं, कोई नई कोंपल नहीं। अरविंद ने पेड़ को देखते हुए सोचा “यह पेड़ भी मेरी तरह खत्म हो चुका है।” और वह उसी पेड़ की छाया (या कहें, सूखे तने) के नीचे बैठ गया। 

  दिन गुजरते गए अरविंद सुबह से शाम उसी पेड़ के नीचे बैठा रहता, कभी आंखें बंद कर लेता, कभी आकाश देखता, कभी जमीन। जैसे किसी ने उससे सब कुछ छीन लिया हो। गांव में लोग बातें करते, “अरे, यह शहर वाला लड़का तो पूरा टूट गया है…” “कहते थे इंजीनियर है, पर लगता है भारी मुसीबत में है…” पर उसे फर्क नहीं पड़ता था। वह भीतर से खाली था।

सिया  उम्मीद की एक किरण : गांव के स्कूल में हाल ही में एक नई शिक्षिका आई थी सिया ठाकुर। वह सौम्य, व्यवहारकुशल और ऊर्जा से भरपूर थी। उसकी सबसे खास बात यह थी कि वह हर चीज़ में सकारात्मकता ढूंढती थी। एक शाम, जब सूरज ढलने ही वाला था, सिया स्कूल से वापस लौटते समय अरविंद को पेड़ के नीचे बैठे देखती रही। तीन-चार दिनों से उसने उसे इसी जगह बैठे हुए देखा था। उसने पास आकर कहा, “आप हर दिन यहां बैठते हैं?”

अरविंद ने सिर उठाया, “हां… यहां शांति मिलती है।” सिया ने सूखे पेड़ को देखा, “ये पेड़ सूखा जरूर है, पर मरा नहीं। इसकी जड़ें अभी भी जिंदा हैं।” अरविंद ने फीकी हंसी से जवाब दिया, “मैंने कभी सूखे पेड़ पर पत्ते उगते नहीं देखे।”

  सिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “समस्या यही है। हमने कोशिश करना ही छोड़ दिया है।” उसकी आवाज़ में ऐसी ऊर्जा थी कि अरविंद कुछ पल के लिए निरुत्तर हो गया।

पेड़ की देखभाल  दरअसल अरविंद की देखभाल :  अगली सुबह, अरविंद पेड़ के नीचे बैठा ही था कि सामने से सिया आती दिखाई दी। उसके हाथ में एक बड़ा घड़ा था जिसमें पानी भरा था। उन्होंने पूछा, “आज पेड़ को पानी देंगे?” अरविंद चौंका। “क्या फर्क पड़ेगा?” 

सिया ने कहा, “पेड़ को नहीं पता कि लोग उसे सूखा कह रहे हैं। उसे सिर्फ पानी चाहिए… और किसी को उम्मीद। क्यों न हम दोनों मिलकर इसे आजमाएं?” 

 अरविंद ने झिझकते हुए घड़ा पकड़ा और पेड़ की जड़ों में पानी डाला। सिया ने भी उसमें थोड़ी खाद डाली। उस दिन पहली बार अरविंद के भीतर कुछ हलचल हुई।

 कुछ दिन—कुछ महीनों का सफर :  यह सिर्फ पेड़ को पानी देने का काम नहीं था। यह एक अदृश्य यात्रा थी जिससे अरविंद अपनी टूट चुकी जिंदगी में फिर से सांस लेने लगा। धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे उसने रोज़ सुबह उठना शुरू किया घर साफ करने लगा। माता-पिता की पुरानी चीजें करीने से लगाने लगा पुराने फोटो देखकर रो लेता, पर अब डरता नहीं था वह बाग में काम करता गांव के बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक्स के छोटे-छोटे प्रयोग सिखाने लगा।  सिया रोज़ एक-दो मिनट के लिए रुककर उससे बात करती। कुछ दिन मौसम, कुछ दिन स्कूल, कुछ दिन गांव की बातें… और कभी-कभी उसके दुख। पेड़ अभी भी सूखा था। पर अरविंद सूखा नहीं था। वह भीतर से नम हो रहा था।

चमत्कार की वह सुबह :  एक दिन सुबह-सुबह सिया दौड़ती हुई अरविंद के घर पहुंची। उसकी सांसें तेज थीं। “अरविंद! जल्दी चलो!” “क्या हुआ?” “पेड़… पेड़ को देखो!” अरविंद के मन में डर था—कहीं पेड़ गिर तो नहीं गया? पर जैसे ही वह पेड़ के पास पहुंचा, उसका दिल एक पल को थम गया। एक छोटी-सी, बेहद नाजुक हरी कोंपल पेड़ की एक शाखा पर चमक रही थी। अरविंद ने कांपते हाथों से कोंपल को छुआ।

आंखें भर आईं। उसे लगा जैसे किसी ने उसके सीने पर चिपकी भारी चट्टान हटा दी हो। सिया ने धीमे से कहा, “देखा? जड़ें कभी मरती नहीं… बस उन्हें वक्त चाहिए।”

  अरविंद की आवाज़ टूट गई, “यह पेड़… मैं समझता था कि खत्म हो गया। जैसे मैं खत्म हो गया था…” सिया ने उसकी आंखों में देखकर कहा, “तुम दोनों जिंदा हो। बस किसी को तुम्हें पानी देना था… और तुम्हें उसे स्वीकार करना था।”

अरविंद की वापसी दूसरी लड़ाई  की  शुरुआत:  उस दिन के बाद अरविंद ने खुद को पूरी तरह बदलने का फैसला किया। वह हर दिन दो घंटे तक पेड़ की देखभाल करता रहा। पर साथ ही उसने अपने करियर का नया रास्ता खोजा। गांव में बिजली की समस्या थी। लोग अभी भी छोटे-छोटे इनवर्टर और पुराने पैनल का इस्तेमाल करते थे। अरविंद को एक विचार आया “क्यों न मैं गांव में अपना सोलर सिस्टम स्टार्टअप शुरू करूं?” उसने अपने घर के एक कमरे को छोटी-सी कार्यशाला में बदल दिया। पुराने पैनल ठीक किए, नए मॉडल बनाए, गांव के युवाओं को ट्रेनिंग दी। पहला प्रोजेक्ट मिला  पंचायत भवन की छत पर पैनल लगाना। फिर स्कूल। फ़िर 20 घर। फिर तीन गांव।  धीरे-धीरे उसका काम फैलता गया।  लोग उसके पास सलाह  लेने आने  लगे। जिस व्यक्ति को लोग समझते थे कि वह टूट चुका है। वह अब गांव का सबसे मजबूत, सबसे सकारात्मक व्यक्ति बन चुका था।

पेड़ फिर से हरा हुआ और अरविंद भी : पेड़ की शाखाओं पर अब कई कोंपलें आ चुकी थीं। धीरे-धीरे पूरा पेड़ हरा होने लगा। अरविंद हर दिन उसके नीचे बैठकर काम के नोट्स बनाता। लोग पूछते, “ये पेड़ कैसे बच गया?” वह मुस्कुराकर कहता, “पेड़ कभी नहीं मरा था। बस थक गया था।” और यह कहते हुए वह अपने अंदर के परिवर्तन को महसूस करता।

दिलों का मिलन प्यार का अंकुरण : एक शाम, पेड़ पूरी तरह हरा हो चुका था। सूरज डूब रहा था। हवा में फूलों की मीठी खुशबू थी। अरविंद ने सिया से कहा, “तुम्हें पता है… जब तुम पहली बार इस पेड़ के पास आई थीं, मुझे लगा था कि तुम गलत हो। पर आज ये पेड़ मुझे हर दिन साबित कर रहा है कि तुम्हारे होने से मेरी जिंदगी बदल गई।” सिया धीरे से हँसी। “मैंने कुछ नहीं किया।

तुमने खुद को संभाला। मैं तो बस तुम्हारे साथ खड़ी रही।” अरविंद ने कहा, “क्या… तुम हमेशा साथ रहोगी?” पेड़ के नीचे जहाँ कभी जीवन खत्म-सा दिखता था, अब एक नई जिंदगी जन्म ले रही थी। दोनों ने एक नए भविष्य के साथ जीने का निर्णय किया। पेड़ उनकी प्रेम कहानी का साक्षी बन गया।

समापन एक सत्य, एक सीख : पेड़ अब पूरे गांव का प्रतीक था, उम्मीद का, ताकत का, और पुनर्जन्म का। लोग कहते, “यह पेड़ तो चमत्कार है।” अरविंद कहता, “चमत्कार पेड़ में नहीं होता, चमत्कार उस इंसान में होता है जो हार नहीं मानता।” और हर बार वह पेड़ की ओर देखकर सोचता, “कोई भी इंसान चाहे जितना टूट जाए, अगर उसकी जड़ें यानी उसका दिल जिंदा हो, तो उसमें दोबारा हरे पत्ते जरूर आते हैं।” 

-समाप्त

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