इशारों की पहचान, प्यार भरी मुस्कान

लेखक : विनोद कुमार झा

 राजधानी दिल्ली की भागदौड़ जिंदगी के बीच एक छोटा-सा कैफ़े कैफ़े मोमेंट्सअपनी शांत धुनों, कॉफी की सौंधी महक और गर्माहट भरे माहौल के लिए लोगों का पसंदीदा ठिकाना था। इसी कैफ़े की शामें अचानक तब रंगीन होने लगीं, जब यहाँ रोज़ एक युवती आने लगी निशा।

गुलाबी दुपट्टे में लिपटी, आँखों में हल्की चमक और चेहरे पर हमेशा टिकी एक संकोची पर मन मोह लेने वाली मुस्कान… उसे देखने भर से कैफ़े का माहौल बदल जाता था। उधर कैफ़े की खिड़की के पास अपनी रोज़ की सीट पर बैठने वाला शांत स्वभाव का युवक आरव, अनजाने में हर शाम उसी मुस्कान का इंतज़ार करने लगा था।

कैफ़े मोमेंट्स में संध्या उतरते ही मानो अपनी ही लय में साँस लेने लगता था। गिटार की मंद-मंद झरती धुनें, स्टीम की हल्की खनक में उठती कॉफ़ी की सुवास, और दीवारों पर टँगी मद्धिम रोशनियाँ सब मिलकर समय को जैसे थोड़ा धीमा कर देती थीं।

इन्हीं शामों का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुकी थी निशा। नरम गुलाबी दुपट्टा, बादलों को मात देने वाली निर्मल मुस्कान, और आँखों में छिपा अथाह स्नेह वह कैफ़े के वातावरण में एक अनकहा काव्य घोल देती थी। और उसी काव्य का एक मौन पाठक था—आरव

अनायास हुई वह भेंट : उस दिन कैफ़े में सभी टेबलें भरी हुई थीं। निशा के लिए जगह ढूँढती उसकी आँखें खिड़की के पास बैठे आरव पर ठहर गईं। आरव ने विनम्र स्वर में कहा,

“यदि आप चाहें, तो यहाँ बैठ सकती हैं।”निशा ने मुस्कुराकर ‘हाँ’ कहा। उसकी मुस्कान दीये की लौ जैसी उजली थी धीमी, पर मन के अंधेरों को रोशन करने वाली।

कुछ पल की शांति के बाद, आरव ने सहज जिज्ञासा से पूछा,
“आप रोज़ इस डायरी में क्या लिखती हैं?”

निशा पन्नों को सहलाते हुए बोली, “शब्द नहीं लिखती… बस हृदय के इशारे संजोती हूँ।”उस वाक्य में ऐसी कोमलता थी कि आरव के भीतर कुछ गहरे में स्पंदित हो उठा।

बिन शब्दों का संवाद :धीरे-धीरे दोनों की उपस्थिति एक-दूसरे के लिए सहज हो चली। निशा के इशारे उसकी अपनी भाषा थे सूक्ष्म, पर स्पष्ट।

  • जब वह खिड़की के बाहर गिरती वर्षा को देख मुस्कुराती, लगता मानो दुनिया को विश्राम का आदेश दे रही हो।
  • कॉफ़ी का कप हल्के से उसकी ओर खिसकाना जैसे साझेदारी का पहला निमंत्रण।
  • और कभी-कभार अचानक चुप हो जाना उस मुस्कान के पीछे छिपी किसी अनकही पीड़ा का संकेत।

आरव अब उसके हर इशारे को पढ़ने लगा था, मानो वह उसकी मौन कविताओं का अर्थ बन गया हो।

वर्षा-रात्रि में खिला प्रेम का बीज : एक सांझ निशा कैफ़े में आई भीगी हुई, थकी हुई। उसके चेहरे पर चमक और थकान एक साथ उपस्थित थीं। आरव ने चिंतित होकर पूछा,“सब ठीक है?”

निशा ने अपनी भीगी लटों को कान के पीछे सरकाते हुए कहा,“जब कोई पूछने वाला मिल जाए, तब थकान भी अपना सौंदर्य दिखाने लगती है।”उसकी मुस्कान का संकेत इतना गहरा था कि आरव के भीतर प्रेम किसी अधूरी कविता की पंक्ति की तरह पूर्ण हो उठा।

न आने के दिन और एक चिट्ठी में छिपा सच : फिर एक दिन… दो दिन… और तीसरा दिन भी बीत गया। निशा नहीं आई। कैफ़े की हर टेबल, हर धुन, हर रोशनी आरव को सूनी लगने लगी। चौथे दिन वेटर ने उसे एक छोटी-सी चिट्ठी थमाई। “सर, वह लड़की रोज़ यह यहाँ रखती थी। आज कहा कि यदि वह दो दिन न आए, तो आपको दे दूँ।”

आरव के हाथ काँप गए। उसने चिट्ठी खोली। उसमें लिखा था कुछ भाव ऐसे होते हैं जिन्हें बोलने में संकोच होता है, पर हृदय उन्हें हर क्षण जीता है। तुम्हारी संगति ने मेरी मुस्कान को नया अर्थ दिया है। यदि यह पत्र तुम्हारे हाथों तक पहुँचा है, तो समझ लेना मेरे इशारे तुम्हें ही पुकार रहे थे। और अब मैं तुम्हें पसंद करने लगी हूँ।” नीचे एक नन्हा-सा मुस्कुराता हुआ चित्र था इशारों का अंतिम, लेकिन सबसे प्रबल संकेत।

वर्षा की फुहारों में हुआ प्रेम का स्वीकार :अगले दिन बारिश तेज़ थी। निशा कैफ़े के बाहर खड़ी थी, आँखों में किसी का इंतज़ार लिए जैसे वर्षा उसके मन का हर संशय धो रही हो। आरव को देखते ही उसके चेहरे पर वही सुकोमल मुस्कान खिल उठी।

आरव ने धीमे स्वर में कहा, “तुम्हारे इशारे पढ़ने में देर हुई… पर अब तुम्हारी हर मुस्कान मेरे उत्तर की तरह है।”निशा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “फिर भी एक इशारा बाकी है।” आरव ने पूछा,“कौन-सा?”

निशा ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया।“यह वाला…”उस स्पर्श में, उस मुस्कान में प्रेम का सम्पूर्ण कथ्य समाया था।

प्रेम का सत्य यही है कि वह शब्दों का मोहताज़ नहीं होता।
कभी वह एक मुस्कान की नमी में, एक स्पर्श की ऊष्मा में,
या एक सूक्ष्म-से इशारे में जन्म लेता है। निशा और आरव की कहानी यही स्मरण कराती है कि जहाँ भावनाएँ निर्मल हों, वहाँ एक मुस्कान ही सबसे बड़ा स्वीकार बन जाती है।

प्यार हमेशा आवाज़ नहीं करता, कभी-कभी वह केवल इशारों में जन्म लेता है और मुस्कान में खिल उठता है। जहाँ दिल से महसूस हो, वहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं रहती।

Post a Comment

Previous Post Next Post