श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष: गोकुल की गलियों में गूंजती है ‘राधे-राधे’ की प्रतिध्वनि

 विनोद कुमार झा

भाद्रपद मास की अष्टमी की रात, जब चंद्रमा अपनी मधुर चांदनी बिखेर रहा होता है और गोकुल की गलियां दीपमालाओं से सजी होती हैं, तब हर ओर सिर्फ एक ही नाम गूंजता है “राधे-राधे”। यह स्वर मात्र उच्चारण नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और भक्ति की धड़कन है, जो सदियों से गोकुलवासियों के हृदय में रची-बसी है।

गोकुल, जहां श्रीकृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं से संसार को मोहित किया, आज भी जन्माष्टमी पर अपने उसी रूप में जीवंत हो उठता है। गलियों में रंग-बिरंगे फूलों की सजावट, मक्खन-मटकी के झूले और रासलीला की झलकियां सब मिलकर मानो समय को पीछे खींच लेती हैं। बूढ़े-बुजुर्ग हों या नन्हे बालक, हर कोई अपने स्वर में प्रेम और भक्ति का रंग घोलकर कह उठता है “राधे-राधे”

यह प्रतिध्वनि केवल ध्वनि नहीं, बल्कि वह भाव है जो कृष्ण और राधा के अनंत प्रेम का प्रतीक है। यहां के मंदिरों में घंटियों की मधुर धुन, मृदंग और बांसुरी की तान के साथ मिलकर वातावरण को अलौकिक बना देती है। ऐसा लगता है मानो स्वयं यशोदा मैया आंगन में खड़ी होकर कान्हा को पुकार रही हों और सखियां राधा के संग रास में मग्न हों।

गोकुल की गलियों में जन्माष्टमी की रात का हर क्षण भक्ति में डूबा होता है। कहीं भक्त झांकियों में श्रीकृष्ण के जन्म की कथा देख रहे होते हैं, तो कहीं दही-हांडी की मस्ती में युवा टोली कान्हा के बालपन को जी रही होती है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में कृष्ण भजन गाते हुए मंदिरों में आरती करती हैं, और हवा में मिलती है तुलसी, चंदन और माखन की सुगंध।

जन्माष्टमी की पूर्व संध्या से ही गोकुल के हर आंगन में भजन-कीर्तन का माहौल शुरू हो जाता है। बच्चे नन्हे गोपाल और राधा के रूप में सजकर गलियों में घूमते हैं, तो वृद्धजन भक्ति में लीन होकर कथा और संकीर्तन का आनंद लेते हैं। मंदिरों में रात्रि भर होने वाले अभिषेक और झूलन उत्सव में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है, जहां श्रद्धालु अपने प्रिय लड्डू गोपाल को झूला झुलाकर आशीर्वाद पाते हैं।

इस पावन अवसर पर गोकुल के बाजार भी अनोखी रौनक से भर उठते हैं। जगह-जगह माखन, मिश्री, पंजीरी और पेड़े की दुकानों पर भीड़ रहती है। कारीगर मिट्टी के मटके और रंगीन पिचकारियां बनाकर बेचते हैं, जिन्हें देखकर लगता है मानो बचपन के खेल फिर से लौट आए हों। हर घर के द्वार पर रंगोली और दीपक की सजावट, मानो स्वागत कर रही हो उस बाल गोपाल का, जो गोकुल में जन्म लेकर सारे संसार को आनंद और प्रेम का संदेश देने आए।

गोकुल की यह अनूठी जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाती है कि प्रेम और भक्ति में कोई भेदभाव नहीं होता—हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या आयु का हो, कृष्ण नाम के उच्चारण से एक हो जाता है। यही कारण है कि यहां की “राधे-राधे” की गूंज सिर्फ कानों में नहीं, आत्मा में उतर जाती है।

अगर आप कभी जन्माष्टमी की रात गोकुल की गलियों में पहुंचे, तो पाएंगे कि यहां समय थम-सा गया है और उस ठहरे हुए क्षण में बस एक ही आवाज गूंज रही है…
“राधे-राधे…” 

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