(परंपरा से आधुनिकता तक की एक सुंदर यात्रा)
विनोद कुमार झा
श्रृंगार यह शब्द सुनते ही मन में एक छवि उभरती है: काजल से भरी आंखें, सजी हुई बिंदिया, माथे पर सिन्दूर, हाथों में चूड़ियां और पैरों में पायल। लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे समाज, सोच और स्त्री की भूमिका बदली, श्रृंगार के स्वरूप भी बदले। परंपरा की बुनियाद पर खड़ा यह सौंदर्य आज तकनीक, आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति के नए रंगों में ढल चुका है।
आज "श्रृंगार" केवल बाहरी सजावट नहीं, बल्कि आत्मअभिव्यक्ति, आत्मस्वीकृति और आत्मबल का प्रतीक बन चुका है।
भारतीय संस्कृति में श्रृंगार का स्थान केवल सौंदर्यवर्धन तक सीमित नहीं रहा, यह एक धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक अनुष्ठान भी रहा है। विवाहित स्त्री की मांग का सिन्दूर, कुंवारी कन्या की बिंदिया, व्रत-त्योहारों पर सजने वाली मेंहदी यह सब परंपरा के साथ स्त्री की भूमिका को दर्शाता था।
श्रृंगार के माध्यम से नारी अपनी संवेदनाओं, सामाजिक दायित्वों और आत्मगौरव को प्रकट करती थी। यह एक चुप संवाद था, जिसे उसने अपने आभूषणों और रंगों के माध्यम से व्यक्त किया।
समय के साथ यह समझ विकसित हुई कि श्रृंगार केवल सजने का साधन नहीं, बल्कि आत्मसंतुलन, आत्मसम्मान और आत्मसुख की अनुभूति भी है। जब एक स्त्री आईने के सामने खड़ी होकर अपने चेहरे पर हल्का मेकअप करती है, तो वह न केवल दूसरों के लिए सजती है, बल्कि अपने लिए जीती है।
वो लिपस्टिक का शेड हो या आईलाइनर की लकीर यह अब किसी परंपरा का पालन नहीं, बल्कि स्वभाव और मूड की अभिव्यक्ति बन गया है।
आज की नारी श्रृंगार को "ब्यूटी प्रोडक्ट्स" तक सीमित नहीं रखती। अब यह एक स्टाइल स्टेटमेंट है जो बताता है कि वह कौन है, क्या सोचती है और कैसे जीना चाहती है। वह ऑफिस जाते समय हल्का मेकअप लगाती है, किसी कॉन्फ्रेंस में न्यूट्रल टोन का मेकअप चुनती है, और किसी पार्टी में बोल्ड लुक अपनाती है।
अब श्रृंगार सामाजिक दबाव नहीं, बल्कि चॉइस का प्रतीक है। इसमें ब्रांड भी हैं, नैचुरल विकल्प भी, ग्लोबल ट्रेंड्स भी हैं, और स्थानीय टच भी।
इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ब्यूटी इन्फ्लुएंसर्स और मेकअप ट्यूटोरियल्स ने श्रृंगार की परिभाषा को एक डिजिटल क्रांति में बदल दिया है। अब लड़कियाँ गांवों में बैठकर भी न्यूयॉर्क फैशन वीक के ट्रेंड्स देख सकती हैं और मेकअप करना सीख सकती हैं जैसे :-
- DIY श्रृंगार
- Vegan कॉस्मेटिक्स
- Gender-neutral मेकअप
- Skin positivity के साथ skincare trends
ये सब श्रृंगार की नई दिशाएं हैं, जो परंपरा से निकलकर ग्लोबल विचारों से जुड़ चुकी हैं।
आज की दौड़ में एक और रोचक बदलाव यह है कि अब श्रृंगार केवल महिलाओं तक सीमित नहीं रहा। पुरुषों के लिए भी स्किनकेयर, हेयरस्टाइलिंग, और हल्का मेकअप सामान्य होता जा रहा है। अब श्रृंगार लिंग की सीमा को पार कर व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया है।
आज का उपभोक्ता सजने-संवरने में सिर्फ सौंदर्य नहीं चाहता, वह सुरक्षा और नैतिकता भी चाहता है। इसलिए ‘क्रुएल्टी-फ्री’, ‘पैराबेन-फ्री’, ‘इको-फ्रेंडली पैकेजिंग’ जैसे शब्द श्रृंगार के क्षेत्र में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। इसका मतलब है कि अब श्रृंगार का स्वरूप सजावटी से संवेदनशील की ओर बढ़ रहा है।
"श्रृंगार के बदलते स्वरूप" केवल फैशन की कहानी नहीं, यह समय की सोच, स्त्री की स्वतंत्रता, समाज की मानसिकता और तकनीक के विकास की यात्रा भी है। श्रृंगार अब एक "बाहरी आवरण" नहीं, बल्कि "भीतर की भावना" बन चुका है।
आज का श्रृंगार मौन नहीं, मुखर है। वह कहता है "मैं जैसी हूँ, वैसी ही सुंदर हूँ।" "मेरा श्रृंगार, मेरा अधिकार है न परंपरा का बोझ, न आधुनिकता की होड़।" "श्रृंगार के रंग भले बदल जाएं, पर उसकी भावना सदैव स्थायी रहेगी सुंदरता को जीने की स्वतंत्रता।"