शक्ति की सात गुफाएँ के अदृश्य सिद्धियों का रहस्य क्या है?

विनोद कुमार झा

पूर्वी खासी और जयंतिया पहाड़ियों की गहराइयों में फैली हुई हैं कुछ रहस्यमयी प्राकृतिक गुफाएँ, जिनके द्वार सामान्य दृष्टि से दिखाई नहीं देते। इन्हें स्थानीय भाषा में “Ki Lum Shakti Tylli” कहा जाता है, जिसका अर्थ है  “शक्ति की बंद गुफाएँ”।

धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवती सती ने अपने प्राण अग्नि में त्याग दिए, तो शिव शोक में तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़ों को अपने सुदर्शन चक्र से काटकर भारतवर्ष के अनेक स्थलों पर गिराया, जो आज शक्तिपीठ के रूप में पूजनीय हैं। किंतु खासी परंपरा में यह विश्वास है कि “सती के शक्ति-कणों का एक सूक्ष्म भाग हिमालय से उड़कर पूर्वोत्तर की वायु में विलीन हो गया था,और वह मेघालय की सात गुफाओं में प्रकट हुआ।”इन गुफाओं को तांत्रिक साधकों के लिए रहस्यमयी तपस्थल माना जाता है। हालाँकि कामाख्या असम में स्थित है, परंतु उसकी तांत्रिक परंपरा मेघालय के खासी और जयंतिया पर्वतीय क्षेत्रों में भी व्याप्त है। कई छोटे मंदिर और गुफाएँ हैं जहाँ शक्ति की तांत्रिक उपासना की जाती है।

एक लोककथा कहती है कि देवी ने अपने शक्ति-बीज को मेघालय की 7 गुफाओं में छुपाया है। साधक जब संपूर्ण साधना करते हैं, तो उन्हें उन शक्ति-स्थलों का मार्ग मिल सकता है। मेघालय की 7 दिव्य गुफाओं के रहस्यमयी रहस्य के बारे में  आइए जानते हैं विस्तार से। इन गुफाओं के नाम केवल मौखिक परंपरा में हैं। उनका कोई नक्शा नहीं। किंवदंती है कि ये गुफाएँ केवल उन्हीं को दिखती हैं जिनकी “शक्ति दृष्टि” जाग्रत हो। ये सात गुफाएँ हैं: आत्मा शोध गुफा, देवी ध्यान गुफा,  धरती गर्भ गुफा, अंतःप्रकाश गुफा,  देव सेतु गुफा,  लोक-संरक्षक गुफा और  तांत्रिक शक्ति का केंद्र।

खासी संत के बारे में कहा जाता है कि वे बचपन से ही दिव्य दृष्टि से युक्त थे। उन्होंने छठे वर्ष में पहली गुफा देखी, और कहा: “यह केवल गुफा नहीं, देवी की जिह्वा है। यहाँ शुद्ध आत्मा प्रवेश करे, तो वह मन्त्र बन जाती है।”अन्य खासी साधक ‘U Syiem Nongrum’ ने बताया कि गुफाओं के भीतर “एक ऐसी वायु बहती है जिसमें मन्त्र सुनाई देते हैं”।

 गुफाओं में देवी का स्वरूप : इन गुफाओं में कोई मूर्ति नहीं होती  परंतु एक गुफा में ज्वाला की आभा, एक में जल की बूँद से ओंकार की ध्वनि, और एक में गर्भगृह के समान नीरवता है।देवी यहाँ संदेश देती हैं, रूप नहीं दिखातीं।

 साधना पद्धति और तांत्रिक परंपरा : नवरात्रि की अष्टमी रात्रि, कुछ साधक विशेष मन्त्रों से इन गुफाओं के द्वार ढूंढने निकलते हैं। यह साधना मौन, त्याग और भयमुक्त चित्त की माँग करती है। देवी की पूजा यहाँ रक्त या फूल से नहीं होती  बल्कि सत्यता, आत्मनियंत्रण और वचन की शुद्धता से होती है। कुछ साधकों के अनुसार, गुफा में प्रवेश करते ही समय का बोध समाप्त हो जाता है  घंटों के ध्यान को वे क्षण मानते हैं। एक महिला साधिका  ने कहा कि“गुफा में मैंने अपना भूत, वर्तमान और भविष्य एक साथ देखा।”कई साधक लौटकर मौन हो जाते हैं जीवन भर के लिए, क्योंकि वे कहते हैं , “शक्ति को शब्दों में बाँधना उसका अपमान है।”

मेघालय में मंदिर केवल ईंट और पत्थर की रचना नहीं हैं वे जीवंत परंपराओं, पूर्वजों की यादों, और प्राकृतिक आत्माओं के वास स्थल हैं। यहाँ की आदिवासी संस्कृति में देवी-देवताओं को जंगल, पर्वत, जल और वायु में देखा जाता है। मंदिरों में पूजा से अधिक समर्पण और प्रकृति के साथ सहअस्तित्व पर बल दिया जाता है। धर्म केवल कर्मकांड नहीं, प्रकृति की आराधना और जीवन के संतुलन का मार्ग है। इन मंदिरों की कथा में कहीं नागों का रहस्य है, कहीं देवी की अग्नि, कहीं शिव का तप और कहीं खासी परंपरा की दिव्यता। यह राज्य भारत की अदृश्य आध्यात्मिक विरासत का वह भाग है जो अब तक अनकहा था। लेकिन यह स्थान न केवल एक आध्यात्मिक तीर्थ है, बल्कि तांत्रिक ज्ञान का जीवित स्रोत,प्राकृतिक आध्यात्मिकता का केंद्र,और नारी शक्ति का अदृश्य रूप है। यहाँ देवी की पूजा प्रकृति के मूलतत्त्वों के माध्यम से होती है जैसे अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, आकाश, चित्त और शून्य। ये गुफाएँ आज भी मौन हैं  लेकिन जो साधक मौन को सुनना जानता है, उसे देवी वहाँ पुकारती है। यह अध्याय बताता है कि आस्था जब बाह्य कर्मकांड से भीतर उतरती है, तब ही शक्ति साक्षात होती है।



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