लेखक: विनोद कुमार झा
(दो दिलों की गूंजती हुई मधुर यादें…)
वक़्त की रेत पर कुछ निशान ऐसे भी होते हैं, जो समय की आँधियों में भी नहीं मिटते। प्यार की वो पहली मुस्कान, वो नज़रों का टकराना और फिर धड़कनों का बेकाबू हो जाना – ये सब जैसे आज भी धुंधली यादों में नहीं, बल्कि पूरे वजूद में गूंजते हैं। "प्यार की शहनाई" सिर्फ़ एक भाव नहीं, बल्कि दो दिलों के बीच जन्मे उस अनकहे संगीत की कहानी है, जो कभी पूरी तरह बयाँ नहीं होती, बस महसूस की जाती है।
वो शाम अब भी याद है, जब पहली बार दोनों एक मंदिर के बाहर मिले थे। आरती की गूंज में जैसे उनके दिलों की धड़कनें एक सुर में बंध गई थीं। कोई वादा नहीं था, कोई कसमें नहीं थीं, बस थी तो एक निशब्द स्वीकृति, एक ऐसी अनुभूति जो सिर्फ़ आत्मा समझ सकती है। उस क्षण से शुरू हुआ एक अनदेखा रिश्ता, जो आगे चलकर जिंदगी की सबसे मधुर धुन बन गया "प्यार की शहनाई"।
समय बीतता गया, शहरों के बीच दूरियाँ आईं, लेकिन दिलों की वो धुन नहीं टूटी। हर चिट्ठी, हर फोन कॉल, हर सपना – सबमें वो पुरानी धुन गूंजती रही। एक-दूसरे की याद में भींगती हुई रातें, छुप-छुपकर रोते हुए दिन, और फिर कभी-कभी उन पुराने लम्हों की मुस्कान ये सब उनकी शहनाई का ही एक रूप था, जो आज भी उनके अकेलेपन में संगीत बनकर गूंजती है।
शहर की हलचल भरी सड़कों पर जब हवा में शहनाई की मधुर तान घुलने लगे और किसी की आंखों में अचानक पुरानी यादें तैर जाएं समझो कोई अधूरी मोहब्बत फिर से करवट ले रही है। "प्यार की शहनाई" सिर्फ एक संगीत नहीं, एक प्रतीक है उन भावनाओं का, जो समय के साथ कहीं दबी रह गई थीं। यह कहानी है उन धड़कनों की, जो बरसों बाद फिर से तालमेल में आने लगीं। यह कहानी है समर्पण, इंतजार और जज़्बातों की... जहां वक़्त थमा, दिल बहे, और शहनाई ने फिर से मोहब्बत की गूंज छेड़ दी। आइए जानते हैं दो प्रेमियों की दिलों की धड़कन के बारे में विस्तार से :-
किसी समय में अमन नाम के युवक एक मशहूर शहनाई वादक था। बनारस की गलियों में उसकी शहनाई की आवाज़ सुनकर लोग अपने दुख भूल जाते थे। लेकिन उसकी खुद की जिंदगी में एक अधूरी तान बची थी सांची। बरसों पहले दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन हालात ऐसे बने कि सांची को मजबूरी में दिल्ली के एक राजघराने से रिश्ता जोड़ना पड़ा। सांची चली गई, और अमन की शहनाई से जैसे सुर ही रूठ गए। वह अब भी बजाता था, पर उसमें दर्द था प्रेम का, विरह का, और अधूरे वादों का।
कुछ वर्षों बाद, एक संगीत महोत्सव के दौरान अमन को दिल्ली बुलाया गया। बड़े मंच पर परफॉर्म करना था। उसी शहर में जहां सांची अब रईस खानदान की बहू थी। लेकिन वो अब पहले जैसी न थी। उसके चेहरे की मुस्कान में भी खालीपन था। वो अपने ससुराल के गहनों से सजी हुई थी, पर आत्मा अब भी अमन के सुरों की प्यासी थी।
जैसे ही महोत्सव की रात अमन ने शहनाई छेड़ी, सांची पीछे की वीआईपी गैलरी में खड़ी रह नहीं पाई। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। अमन को देखा... वो धुन पहचानी... वही पहली बार सुनी थी, जब उसने कहा था, "अगर कभी बिछड़ गए, तो ये धुन मेरे लिए बजाना। मैं लौट आऊंगी।"
शहनाई की धुनों के बीच एक बार दोनों ने फिर मिलने की कोशिश की। एक पुराने मंदिर में मुलाकात तय हुई वहीं जहां बचपन में कसमें खाई थीं। अमन ने पूछा, “क्या तुम अब भी मुझसे प्यार करती हो?”
सांची ने जवाब दिया, “हर बार जब तुम शहनाई बजाते हो, मेरा दिल उसी धुन में रोता है... और जीता भी है।” लेकिन समाज, रिश्ते, मर्यादाएं सब उनके रास्ते में खड़े थे। सांची चाहती थी आज़ाद होना, पर अपने बेटे की खातिर वह बंधी हुई थी। अमन समझता था, पर उसका दिल टूटता रहा।
एक दिन शहर में खबर फैल गई अमन ने अपने जीवन की अंतिम परफॉर्मेंस की घोषणा की। यह एक श्रद्धांजलि थी उस प्रेम के नाम, जो उसे अधूरा छोड़ गया। हजारों लोग उस शाम जमा हुए। लेकिन जब उसने शहनाई बजानी शुरू की सुर एकदम अलग थे। भावनाओं से लबालब, वो धुन जैसे किसी आत्मा का साक्षात्कार था। और तभी भीड़ के बीच से कोई आई... लाल साड़ी में, बिना गहनों के... बस आंखों में आँसू और होठों पर वही वादा...सांची आ गई थी।
वो मंच पर पहुंची, सब सामने खड़े रहे, पर दोनों की नजरें किसी को नहीं देख रही थीं। अमन ने शहनाई नीचे रख दी। और पहली बार, दोनों ने एक-दूसरे को भींच लिया बिना शब्दों के, बस संगीत के माध्यम से। उस दिन शहर में जो धुन गूंजी, वो न किसी राग में थी, न किसी ताल में वो सिर्फ प्यार की शहनाई थी।
एपिलॉग: अमन और सांची ने साथ जीने का निर्णय नहीं लिया उन्होंने साथ जीने के लिए संगीत चुना। वे अक्सर साथ मंच पर दिखते ना शादी की ज़रूरत पड़ी, ना समाज की इजाज़त। क्योंकि उनकी मोहब्बत अब धुन बन चुकी थी, जो हर प्रेमी के दिल में कहीं ना कहीं बजती है...प्यार की शहनाई केवल एक इंस्ट्रूमेंट नहीं, एक जीवन का स्वर है जो अधूरी मोहब्बतों, टूटी उम्मीदों, और चुप आंसुओं से बनता है। यह कहानी सिखाती है कि कभी-कभी प्रेम मिलन नहीं, समझदारी और त्याग में परिपूर्ण होता है। और जब दो दिलों की तान मिलती है, तो पूरी कायनात सुनती है शहनाई की तरह उन सभी दिलों की है जिन्होंने कभी किसी को सच्चे मन से चाहा, उसे अपनी आत्मा में बसा लिया और फिर वक्त की गहराइयों में भी उसे भुला नहीं पाए। "प्यार की शहनाई" एक ऐसा भाव है, जो टूटे हुए रिश्तों के बाद भी सजे हुए मंदिर की तरह दिल में गूंजता है – पवित्र, निश्छल और शाश्वत।