विनोद kumar झा Khabar Morning
भक्ति में शक्ति: "पार्वतीजी की तपस्या और करुणा ने उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुँचा दिया।"
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वतीजी भगवान् शिव को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या कर रही थीं। उनकी तपस्या के अंत में ब्रह्माजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि भगवान शिव उन्हें अवश्य पतिरूप में प्राप्त होंगे।
एक दिन, पार्वतीजी भगवान शिव का ध्यान कर रही थीं, तभी उन्होंने एक बालक की करुण पुकार सुनी। वह बालक पानी में डूब रहा था और एक ग्राह (मगर) ने उसे पकड़ रखा था। बालक का कष्ट देखकर पार्वतीजी तुरंत सहायता के लिए वहाँ पहुँचीं।
बालक को बचाने के प्रयास में पार्वतीजी ने ग्राह से प्रार्थना की, "ग्राहराज! मैं आपको प्रणाम करती हूँ। कृपया इस बालक को छोड़ दें।"
ग्राह ने उत्तर दिया, "विधाता ने यह नियम बनाया है कि छठे दिन जो मेरे पास आए, वह मेरा आहार बन जाए। आज विधाता ने इसे ही मेरे लिए भेजा है, इसलिए मैं इसे नहीं छोड़ सकता।"
पार्वतीजी ने करुण स्वर में कहा, "ग्राहराज! इस बालक को छोड़ दें। इसके बदले मैं अपनी तपस्या का पुण्य आपको दे दूँगी।"
ग्राह ने उनकी बात सुनकर कहा, "यदि तुम अपनी पूरी तपस्या मुझे अर्पित कर दो, तो मैं इस बालक को छोड़ दूँगा।"
करुणामयी पार्वतीजी ने तुरंत अपनी पूरी तपस्या ग्राह को अर्पित कर दी। तपस्या का फल पाते ही ग्राह सूर्य के समान प्रकाशित हो गया। उसने कहा, "देवि! अब आप अपनी तपस्या वापस ले लें। मैं आपके कहने मात्र से इस बालक को छोड़ देता हूँ।"
परंतु पार्वतीजी ने तपस्या वापस लेने से इनकार कर दिया। ग्राह ने देवी की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बालक को मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए देवी की ओर देखा। पार्वतीजी ने उसे स्नेहपूर्वक दुलारते हुए सबल बना दिया। इस घटना के बाद, पार्वतीजी ने अपनी तपस्या पुनः आरंभ कर दी। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, "कल्याणि! अब तुम्हें तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। तुमने जो तपस्या अर्पित की थी, वह अनंत गुणा होकर तुम्हारे लिए अक्षय बन गई है।"