विनोद kumar झा, Khabar Morning
महाभारत का प्रत्येक प्रसंग अपनी अनोखी शिक्षा और रोमांचक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। कुरुक्षेत्र के युद्ध में ऐसे अनेक क्षण आए, जिन्होंने भाईचारे, धर्म और कर्तव्य के बीच संघर्ष को उजागर किया। ऐसा ही एक रोचक प्रसंग है जब अर्जुन ने अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर पर क्रोधवश हथियार उठा लिया था।
#कुरुक्षेत्र युद्ध का 17वां दिन
कुरुक्षेत्र युद्ध के 17वें दिन युधिष्ठिर और कर्ण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। कर्ण के भीषण वारों से युधिष्ठिर बुरी तरह घायल हो गए। लेकिन कर्ण ने उन्हें मारने का अवसर होते हुए भी उनकी हत्या नहीं की, क्योंकि उन्होंने कुंती को वचन दिया था कि वह पांडवों में से किसी को भी नहीं मारेंगे।
युधिष्ठिर के घायल होने पर नकुल और सहदेव उन्हें युद्धभूमि से तंबू में लेकर गए, जहां उनकी मरहम-पट्टी की जा रही थी। इस दौरान अर्जुन और भीम युद्ध में व्यस्त थे।
# अर्जुन पहुंचे युधिष्ठिर के तंबू में
जब अर्जुन को युधिष्ठिर के घायल होने का पता चला, तो वह उनकी स्थिति का जायजा लेने तंबू में पहुंचे। युधिष्ठिर ने उन्हें आते देखा और सोचा कि अर्जुन कर्ण को मारकर उनके पास खुशखबरी लेकर आए हैं। लेकिन अर्जुन ने जब बताया कि वह केवल उनकी स्थिति जानने आए हैं और कर्ण को अब तक नहीं मारा, तो युधिष्ठिर क्रोधित हो गए।
# युधिष्ठिर का क्रोध और गांडीव की निंदा
क्रोध से भरे युधिष्ठिर ने अर्जुन पर ताने कसते हुए कहा, "यदि तुम मेरे अपमान का प्रतिशोध नहीं ले सके, तो तुम्हारे गांडीव का कोई मूल्य नहीं है। इसे फेंक दो।" यह सुनकर अर्जुन क्रोधित हो गए। उन्होंने गांडीव के प्रति लिया वचन याद किया, जिसके अनुसार कोई भी उनके धनुष की निंदा करेगा तो वह उसे मार डालेंगे। अर्जुन ने तुरंत अपने गांडीव को उठाया और युधिष्ठिर पर वार करने के लिए तैयार हो गए।
# श्रीकृष्ण ने किया हस्तक्षेप
श्रीकृष्ण ने समय पर वहां पहुंचकर अर्जुन को रोका। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि ज्येष्ठ भ्राता को मारना पाप है। लेकिन अर्जुन ने अपने वचन का पालन करने की बात कही। इस पर श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि यदि अर्जुन युधिष्ठिर का अपमान कर देंगे, तो वह वचन का पालन हो जाएगा। अर्जुन ने मजबूरन युधिष्ठिर का अपमान किया। लेकिन इसके बाद वह आत्मग्लानि में डूब गए और आत्महत्या करने की ठानी।
# श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया आत्महत्या का समाधान
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि आत्महत्या अधर्म है। उन्होंने सुझाव दिया कि आत्मप्रशंसा करना आत्महत्या के समान है। श्रीकृष्ण के निर्देश पर अर्जुन ने अपनी वीरता की प्रशंसा की और आत्महत्या का विचार त्याग दिया।
यह घटना धर्म, कर्तव्य और वचन के बीच संतुलन की महत्ता को दर्शाती है। भगवान कृष्ण की बुद्धिमत्ता और समय पर सलाह ने अर्जुन को अधर्म करने से बचा लिया। महाभारत के इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि क्रोध और अहंकार पर नियंत्रण रखते हुए धर्म के मार्ग पर चलना सबसे बड़ा कर्तव्य है।