धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व को जानने की इच्छा प्रकट की। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, "इस एकादशी को विष्णु प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी बड़े-बड़े पापों का नाश करती है।"
कथा: भगवान को भोजन पर आमंत्रण
एक नगर में एक धर्मनिष्ठ राजा का शासन था। वहां सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे, और उस दिन पशु-पक्षियों तक को अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन, एक व्यक्ति दूसरे राज्य से राजा के पास नौकरी मांगने आया। राजा ने उसे नौकरी दी, लेकिन एक शर्त रखी कि एकादशी के दिन उसे अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने शर्त मान ली, लेकिन एकादशी के दिन उसने फलाहार से पेट भरने में असमर्थता जताई और राजा से अन्न मांगा। राजा ने उसे अन्न दिया, और वह इसे लेकर नदी पर स्नान करने चला गया।
भोजन बनाकर उस व्यक्ति ने भगवान को आमंत्रित किया। भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर उसके साथ भोजन करने लगे। अगले एकादशी पर जब उसने अधिक अन्न की मांग की तो राजा को आश्चर्य हुआ। व्यक्ति ने बताया कि भगवान उसके साथ भोजन करते हैं। राजा को विश्वास नहीं हुआ, और वह पेड़ के पीछे छिपकर देखने गया। भगवान ने उसकी भक्ति परखने के लिए प्रकट होने में विलंब किया, जिससे दुखी होकर व्यक्ति ने नदी में कूदने का निश्चय किया। उसकी दृढ़ता देखकर भगवान ने प्रकट होकर भोजन किया और अंत में उसे अपने धाम ले गए। इस घटना से राजा को सच्ची भक्ति और मन की शुद्धता का महत्व समझ में आया।
एक और कथा: राजा की परीक्षा
एक बार भगवान विष्णु ने एक राजा की भक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। वे सुंदरी का रूप धारण कर सड़क पर बैठ गए। राजा ने सुंदर स्त्री को देखकर उसके पास जाने का निर्णय किया। उसने सुंदरी को अपने महल में रानी के रूप में स्थान देने की बात कही। सुंदरी ने शर्त रखी कि उसे राज्य का पूरा अधिकार चाहिए और एकादशी को मांसाहार बनाने का आदेश दिया।
एकादशी के दिन जब उसने राजा से मांसाहार करने को कहा तो राजा ने धर्म का पालन करते हुए मना कर दिया। लेकिन सुंदरी ने धमकी दी कि यदि उसने भोजन नहीं किया तो वह बड़े राजकुमार का सिर काट देगी। धर्म के प्रति राजा की दृढ़ता को देखकर बड़ी रानी और राजकुमार ने भी धर्म की रक्षा के लिए त्याग का निश्चय किया।
तब भगवान विष्णु ने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर राजा की धर्म-परायणता की प्रशंसा की और वरदान मांगे को कहा। राजा ने केवल भगवान का आशीर्वाद और उद्धार की प्रार्थना की।
देवोत्थान एकादशी का महत्व
देवोत्थान एकादशी हमें सच्ची भक्ति, धर्म की शक्ति और मन की शुद्धता का महत्व सिखाती है। इस एकादशी का पालन करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।