रविवार को तुलसी और पीपल की पूजा नहीं करने का धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से गहरा महत्व है। हिंदू धर्म में तुलसी और पीपल दोनों ही पवित्र माने जाते हैं, लेकिन कुछ विशिष्ट दिनों पर उनकी पूजा का निषेध बताया गया है, खासकर रविवार के दिन। आइए जानते हैं इसके पीछे छिपे धार्मिक और सांस्कृतिक कारण।
रविवार को सूर्य देव का दिन माना जाता है और तुलसी एवं पीपल दोनों का संबंध विष्णु और शिव से है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, रविवार को सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व होता है, और तुलसी माता को शीतलता और चंद्र से जोड़ा जाता है। इसलिए, तुलसी की पूजा रविवार को वर्जित मानी जाती है, क्योंकि सूर्य और चंद्र के बीच ऊर्जा का टकराव होता है। इससे तुलसी का पौधा प्रभावित हो सकता है, और तुलसी माता नाराज हो सकती हैं।
पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि पीपल के पेड़ में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। लेकिन रविवार के दिन सूर्य की अधिकता के कारण, पीपल के पेड़ को जल अर्पित करने या उसकी पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा कम हो सकती है। पीपल के पेड़ को शनिवार के दिन जल अर्पित करना विशेष फलदायी माना गया है, जबकि रविवार को इससे बचना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं में कुछ विशेष दिन और समय नियमों का पालन करना श्रद्धा और अनुशासन का प्रतीक है। तुलसी और पीपल दोनों की पूजा के लिए सोमवार से शनिवार के दिन उत्तम माने जाते हैं, और रविवार को विश्राम का दिन माना जाता है।
आधुनिक संदर्भ में देखा जाए तो, यह नियम पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी जुड़ा हो सकता है। पौधों को स्वस्थ रखने और उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए भी कुछ दिन विश्राम देना आवश्यक हो सकता है, और ये धार्मिक मान्यताएं इसी उद्देश्य को पूरा करती हैं।
इस प्रकार, रविवार को पीपल और तुलसी की पूजा न करने के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारण जुड़े हुए हैं, जो हमें प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं।